Sunday, October 21, 2012

"यश"स्वी चोपड़ा को समर्पित


अस्सी बरस का यशस्वी जीवन जीकर यश चोपड़ा आज इस संसार से विदा हो गए। मृत्यु अवश्यम्भावी है। अवस्था देखते हुए यह भी नहीं कहा जा सकता कि समय से पहले गुज़र गए। किन्तु यह अवश्य विचित्र लगता है कि सम्पन्नता के महासागर में गोते लगाने वाली शख्सियत डेंगू जैसी बीमारी की चपेट में आ जाता है। ज़िंदगी ऐसी ही अटपटी चीज़ों से भरी पडी होती है। उनको याद करने के बहाने याद करते हैं उनके द्वारा निर्देशित "धर्मपुत्र" को जिसमें धार्मिक कट्टरपन पर, बिना ज्यादा प्रवचन दिए सिर्फ दुराग्रह के बेतुकेपन को रेखांकित करके, बड़ा प्रभावशाली प्रहार किया गया है।

आचार्य चतुरसेन के उपन्यास पर आधारित यह फिल्म यश चोपड़ा की शुरूआती कृतियों में से है। फिल्म को देखकर लगता है कि उस दौर के यश चोपड़ा के सरोकार ही कुछ और थे। हिन्दुत्ववादी गौरव से ओत-प्रोत एक युवक की मनःस्थिति का बढ़िया चित्रण है। पढ़ाई-लिखाई के बीच जोशीले भाषण देने वाले और गीत गाने वाले इस मुख्य पात्र का सारा जोशोखरोश तब काफूर हो जाता है जब उसको यह पता चलता है कि वह एक हिन्दू परिवार गोद लिया गया बच्चा है जिसकी माँ  ने उसे तब जन्म दिया था जब वह कुंवारी थी।
उस ज़माने में अदाकारी पर थियेटर का असर काफी अधिक दिखता था। फिर भी इस फिल्म में भूमिका निभाने वाले सभी कलाकार - अशोक कुमार, मनमोहन कृष्ण, रहमान, माला सिन्हा, शशि कपूर आदि अपनी अपनी भूमिकाओं में खूब जांचते हैं।  बल्कि इस फिल्म को और बिलकुल अलग कथावस्तु को लेकर बनाई गयी "मोहब्बत इसको कहते हैं" देखने के बाद शायद कई लोग मेरी इस राय से सहमत होंगे कि शशि कपूर में भी एंग्री यंग मैन वाली संभावनाएं थी। नियति ने उनको गुस्सैल नौजवानों  का छोटा भाई बनाकर छोड़ दिया।
अपनी थीम के मामले में बेहद प्रचंड इस फिल्म का अत्यधिक कर्णप्रिय  संगीत आश्चर्यचकित करता है। एक ओर  "भूल सकता है भला कौन वो प्यारी आँखें" जैसे सदाबहार मधुर गीत हैं तो दूसरी तरफ "चाहे ये मानो चाहे वो मानो" जैसे दार्शनिक किस्म के गाने। सुनने में कर्णभेदी लगने वाला "ये किसका लहू है कौन मरा" भी अनूठा है, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। अपनी जातीयता के गौरव के भार तले दबे युवक का दर्प चूर्ण कर देने वाले सत्य की इससे बेहतर क्या अभिव्यक्ति हो सकती थी?
श्रद्धांजलि और समीक्षा में अंतर होता है। यश चोपड़ा का मूल्यांकन करने के लिए निस्संदेह उनके पूरे कृतित्व पर दृष्टिपात करना होगा और उनकी खूबियों के साथ खामियों का भी ज़िक्र करना होगा। मगर अवसर की मांग देखते हुए फिलहाल हम उनके इस कृतित्व को, जो हमारी राय में उनका सर्वश्रेष्ठ है, याद करते हुए उनकी आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना करेंगे।