Sunday, November 15, 2009

इक्कीसवीं सदी के मर्यादा पुरुषोत्तम


इंफोसिस के संस्थापक और पद्मविभूषण से सम्मानित श्री नारायण मूर्ति से मिलकर एक पुरानी कहावत बरबस याद आ जाती है कि जो शाख जितनी फलदार होती है उतनी ही झुकी हुई होती है। इनकी सादगी और मूल्यों के प्रति गहरी आस्था के विषय में काफी कुछ सुन रखा था। जब रूबरू होने का मौका मिला तो लगा बहुत कुछ है फर्श से अर्श तक पहुंचे इस शख्स के जीवन में सीखने को। पैसे वाला होने को सब कुछ मानने वाले ज़माने में ऐसे लोग बिरले मिलेंगे जो अरबों की जायदाद पैदा करके भी अपने इस्तेमाल के लिए थोड़ा सा धन रखते हैं, एक आम मध्यवर्गीय हिन्दुस्तानी जैसा जीवन जीते हैं और यह स्वीकार करने की भी उदारता रखते हैं कि एक गरीब देश में कारपोरेट जगत के कर्णधारों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनके अनावश्यक उपभोक्तावाद से समाज पर ग़लत असर पड़ रहा है। ऐसे दौर में, जब जनता के वोटों से बने नेता भी कोई मिसाल कायम करने की ज़रूरत नहीं समझते, मूर्ति इस बात पर बल देते हैं कि कारपोरेट जगत के मूर्धन्य व्यक्तियों को अपने सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए। बदले हुए आर्थिक परिवेश में कारपोरेट जगत की और युवाओं का रुझान तेजी से बढ़ा है। ऐसे में मूर्ति जैसे विभूतियों की मौजूदगी इस बात का आश्वासन देती है कि मूल्य समय के साथ बदल भले ही जाएँ उनका क्षरण नहीं होगा। उदारमना मूर्ति गरीबों के लिए बेहतर शैक्षणिक सुविधाओं के हिमायती हैं लेकिन उनका स्वयं का जीवन इस बात की मिसाल है कि प्रतिभा और दृढ़ संकल्प के द्बारा व्यक्ति संसाधनों की कमी पर विजय प्राप्त कर सकता है। आज हमारे पास ऐसे राजनेता तो रह नहीं गए हैं जिनसे कोई प्रेरणा ली जा सके। ऐसे में जो लोग किसी प्रेरणास्रोत की तलाश में हैं उनको इस अद्भुत व्यक्ति के जीवन में ज्ञान और अनुभव का अथाह भण्डार मिलेगा। हम कामना करते हैं कि उनकी उम्र लम्बी हो और वे डगमगाती आस्थाओं के इस दौर में प्रेरणा के अजस्र स्रोत बने रहेंगे।