Thursday, January 7, 2010

बिमल रॉय: एक विनम्र श्रद्धांजलि

आज से 34 साल पहले इसी दिन दिवंगत हुए बिमल रॉय उन विलक्षण फिल्मकारों में अग्रणी थे जिनकी बदौलत हिंदी सिनेमा का आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक मुकाम है। रॉय ने "देवदास", "परिणीता", "बिराज बहू" और "बंदिनी" जैसी उत्कृष्ट साहित्यिक कृतियों पर फिल्में बनाकर यह साबित किया कि सिनेमा की भूमिका केवल मनोरंजन तक ही सीमित है। स्वयं एक प्रतिभाशाली फिल्मकार होने के अलावा वे निस्संदेह प्रतिभा के अद्भुत पारखी भी थे जो कि इस बात से प्रमाणित होता है कि मूल रूप से संगीतकार के रूप में ख्यातिप्राप्त सलिल चौधरी के लेखन की ताकत को उन्होंने पहचाना जिसके फलस्वरूप आज भारत के पास "दो बीघा ज़मीन" जैसा अमूल्य रत्न है। जैसे साहित्य के क्षेत्र में "गोदान" का नायक "होरी" अभावग्रस्त और चिर संघर्षरत भारतीय किसान का प्रतीक बन चुका है वैसे ही ग्रामीण सामंती व्यवस्था और नगरों के नृशंस पूँजीवाद के बीच पिसते श्रमिक वर्ग के प्रतिनिधि का दर्ज़ा "दो बीघा ज़मीन" के शम्भू को प्राप्त है। जिन लोगों को यह भ्रम है कि गत वर्ष एक अँगरेज़ के द्वारा बनाई गयी एक अति साधारण फिल्म के ओस्कार जीतने के बाद ही वैश्विक पटल पर हिंदी सिनेमा (आज की भाषा में बॉलीवुड) को प्रतिष्ठा मिलने का दौर शुरू हुआ है, उनको इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि "दो बीघा ज़मीन" पचपन वर्ष पहले ही अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में अपना डंका बजा चुकी थी। यदि प्रगतिशील साहित्य की तरह "प्रगतिशील सिनेमा" की बात की जाए तो बिमल रॉय निस्संदेह इसके पुरोधा माने जायेंगे। "दो बीघा ज़मीन" के साथ ही उनकी दूसरी प्रसिद्द फिल्म "सुजाता" को देखिये। अस्पृश्यता की समस्या, जो भारतीय समाज की एक अजीबो-गरीब विभीषिका रही है, इतने बेजोड़ ढंग से शायद ही कहीं और दिखाई गयी हो। "सुजाता " की खासियत यह है कि एक गुरुतम विषय को बेहद सहज ढंग से पेश किया गया है जिससे दर्शक बगैर ऊबे हुए सोचने पर मजबूर हो जाता है। और यदि आप कहीं यह मान बैठे हैं कि बिमल रॉय तो अपने ज़माने के श्याम बेनेगल थे जिनकी फिल्में केवल कलात्मक हो सकती हैं, मनोरंजक नहीं, तो "बंदिनी" देख लीजिये। और "यहूदी" को हम कैसे भूल सकते हैं? रोमन साम्राज्य की पृष्ठभूमि पर बनी हुई यह अनोखी फिल्म हास्यास्पद हो गयी होती अगर किसी औसत योग्यता वाले निर्देशक ने इसकी कमान संभाली होती। लेकिन बिमल रॉय ने एक बार फिर साबित कर दिया के फिल्म बनाने के मामले में वे हरफनमौला हैं। उन्हें हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।

2 comments:

  1. हमारी भी श्रद्धांजलि! आपके लेख में जिन फ़िल्मों का ज़िक्र है उनमें से सिर्फ़ एक- बिराज बहू - नहीं देख पाया हूँ. डीवीडी जुगाड़ने की कोशिश करता हूँ.

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  2. हमारी विनम्र श्रद्धांजलि

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